- अतुल कन्नौजवी
ऐ फलक थोडी जगह मुझको भी दे तारों के बीच
अब मुझे अच्छा नहीं लगता जमींदारों के बीच
सच कई दिन तक रखा रहता है बाजारों के बीच
झूठ बिक जाता है पलभर में खरीदारों के बीच
मुल्क में हरेक सूबे में, यहां तक हर जगह
बेवकूफों की हुकूमत है समझदारों के बीच
इक बचाती जिंदगी तो दूसरी लेती है जान
फासला कितना बड़ा है ढाल—तलवारों के बीच
जैसे—जैसे रुख बदलती है हमारी जिंदगी
हम उलझते जा रहे हैं अपने किरदारों के बीच
खुशबुएं लेकर भी किस्मत की चुभन सहते हुए
गुल हमेशा मुस्कराया करते हैं खारों के बीच।।
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