गुरुवार, अगस्त 15, 2013

दिन न मालूम न ही राते हैं

जश्न हर साल हम मनाते हैं,
गुजरे लम्हें याद आते हैं,
लड रहे हैं हम मुकद्दर से
जिंदगी रोज हम बिताते हैं
हमको अपनों ने ही सताया है
दूसरे कब तलक सताते हैं
वो तो खुद से ही रूठ जाते हैं
हम जो उनको कभी मनाते हैं
प्यार का नाम अतुल है मुश्किल
दिन न मालूम न ही राते हैं।। — अतुल

शनिवार, मार्च 16, 2013

लो फिर एक हत्या

लो फिर एक लडकी की हत्या
पुलिस—प्रदर्शन और जांच
मामला बलात्कार हत्या का
या फिर और कुछ
कुछ भी हो, शहर सहमा है
सडक सन्नाटे में
गलियों में दहशत
कांप उठे कब्र के लोग तक
इंसानियत के साए में ये
हैवान छुपे हुए हैं
पहचान मुश्किल मगर
सरकार, कानून सब निरर्थक
क्यों हुई ऐसी व्यवस्था
मौत से खतरनाक हैं
हवाओं में तैरते
इन वहशियों के मंसूबे
जो मासूम, लाचार
लडकियों पर जुल्म का
बर्बर इतिहास बनाते हैं...atul