गुरुवार, सितंबर 29, 2011

जो मैंने की इबादत डूबकर उनकी तो हंगामा

मैं पाता हूँ तो हंगामा, मैं खोता हूँ तो हंगामा, 
किसी की वेबफाई में मैं रोता हूँ तो हंगामा
मैं आता हूँ तो हंगामा, मैं जाता हूँ तो हंगामा,
किसी को देख एक पल मुस्कुराता हूँ तो हंगामा.
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यही तो एक दुनिया है, ख़्यालों की या ख़्वाबों की, 
मोहब्बत में उन्हें पाने कि कोशिश की तो हंगामा
सभी तालीम देते थे मोहब्बत ही इबादत है, 
जो मैंने की इबादत डूबकर उनकी तो हंगामा.
                                                        - Atul kushwah

मैं घर पानी के रहता हूँ..

मैं लेकर जिस्म मिटटी का, मैं घर पानी के रहता हूँ, 
मंजिल मौत है मेरी सफ़र हर रोज़ करता हूँ
क़त्ल होना है मेरा ये मुझे मालूम है लेकिन, 
नहीं मुझको खबर किसके निशाने में मैं रहता हूँ. - अतुल

सोमवार, सितंबर 12, 2011

जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा

कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में आकार बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कास लिया दो पल तो हंगामा

जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
ये जज्बातों, मुलाकातों हंसी रातों का हंगामा
जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब
ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा

कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा
नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा

इबारत से गुनाहों तक की मंजिल में है हंगामा
ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा
कभी बचपन, जवानी और बुढापे में है हंगामा
जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा

हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा

डा. कुमार विश्वास

रविवार, सितंबर 11, 2011

हाँ ! इबादत-सी बन गया है तू ..

हाँ ! इबादत-सी बन गया है तू 
मेरी आदत-सी बन गया है तू

 सांस लूँ या कि नाम लूँ तेरा  
  इक ज़रुरत-सी बन गया है तू

 रूह को जो सुकून देती है
ऐसी राहत-सी बन गया है तू

 मांगती हूँ तुझे  दुआओं में 
मेरी हसरत-सी बन गया है तू  

 मुद्दतों बाद जो हुई मुझ पर
उस इनायत-सी बन गया है तू

 मिलती है जो बड़े मुक़द्दर से 
रब की रहमत-सी बन गया है तू

 तू सनम है कि है खुदा मेरा 
यूं अक़ीदत-सी बन गया है तू

 मैं "किरण" किस तरह कहूँ उस से 
जान-ओ-दौलत-सी बन गया है तू
********************** "कविता "किरण"

लाख बारिश हो गल नहीं सकता.....

लाख बारिश हो गल नहीं सकता
वो है पत्थर पिघल नहीं सकता

मुझसे कहता है मैं बदल जाऊं
खुद को लेकिन बदल नहीं सकता

मेरा चेहरा है रूह का चेहरा
 आइनों से बहल नहीं सकता

है तलब दिल को पूरे दरिया की 
देख क़तरा मचल नहीं सकता

दर्द ये तो बहुत है शर्मीला
दिल से बाहर निकल नहीं सकता

यूँ तो सहरा बहुत ही प्यासा  है
पर समंदर निगल नहीं सकता

गिर गया जो नज़र से अपनी ही
वो 'किरण' फिर संभल नहीं सकता- कविता'किरण'

गुरुवार, सितंबर 08, 2011

मोहब्बत से रिटायर हूँ

मैं ग़ालिब के ज़माने का अदद सा एक शायर हूँ.
प्रेम के गीत लिखता हूँ मोहब्बत से रिटायर हूँ.. - अतुल कुशवाह