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प्रतीक चित्र। |
अतुल कन्नौजवी
शुरू होती है जब दहलीज सावन के महीने की
वो इक आदत सी पड़ जाती है उन आंखों से पीने की
मुहब्बत तोड़कर दिल जब हमें कमजोर करती है
खुदा हमको नई ताकत भी दे देता है जीने की।।
ये किस दहलीज और दीवार पे सर मारता हूं मैं
क्यों अपने आप को गम में डुबोकर मारता हूं मैं
अगर पत्थर का दिल सीने में है तेरे तो सुन भी ले
तू मेरी राह का पत्थर है, ठोकर मारता हूं मैं।।
एक मत्ला और दो शेर हाज़िर हैं...
हर इक सामान झूठा था मगर बाजार सच्चा थाकहा जाता था आईना हर इक अखबार सच्चा था,मोहब्बत करके ये अक्सर बिछडकर सोचते हैं लोगखराबी किसमें थी ना जाने किसका प्यार सच्चा था,अकेले में पढोगे जब किसी दिन तब ये समझोगेतेरी झूठी कहानी में मेरा किरदार सच्चा था।।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएं72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर आभार आदरणीय सर
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