सोमवार, मार्च 28, 2011

मुहब्बत कौन करता है...


कवयित्री डॉक्टर कविता किरण जी की ये लाइने  मुझे बेहद पसंद हैं...


इबादत कौन करता है इनायत कौन करता है,
सभी हैं लूटनेवाले हिफाज़त कौन करता है,
भ्रमर की गुनगुनाहट से ही अब हर फूल डरता है.
सभी खिलवाड़ करते हैं मुहब्बत कौन करता है
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मेरी ख़ामोशी को इज़हार समझ बैठे हैं,
मेरे इन्कार को इकरार समझ बैठे हैं,
हंसके दो बात 'किरण' हमने उनसे क्या कर ली,
बस इसी बात को वो प्यार समझ बैठे हैं
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कलम अपनी,जुबां अपनी कहन अपनी ही रखतीहूँ,
अंधेरों से नहीं डरती 'किरण' हूँ खुद चमकती हूँ,
ज़माना कागजी फूलों पे अपनी जां छिड़कता है
मगर मैं हूँ की बस अपनी ही खुशबू से महकती हूँ

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ज़रा पाने की चाहत में जियादा छूट जाता है
जो कतरे को मनाती हूँ समंदर रूठ जाता है
कभी भी भूलकर मत आज़माना तुम 'किरण दिल को
ज़रा-सी ठेस लगने से ये शीशा टूट जाता है
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सूर्य ने जुगनुओं को पाला है,
क्या हुआ दिल किसी का काला है
नाम मेरा 'किरण' है ऐ साहिब!
मेरे अंदर मेरा उजाला है
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आइना रोज़ संवरता कब है
अक्स पानी पे ठहरता कब है
हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है
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दिल में उमीदें जगाओ तो सही
ख्वाब पलकों पे सजाओ तो सही
इतना भी ऊँचा नहीं है आस्मां
तुम परों को आजमाओ तो सही 

शनिवार, मार्च 19, 2011

होली का मौसम आता है...


कुछ रंग भरा ,कुछ भंग भरा,
होली का मौसम आता है
कुछ जीजा का, कुछ साली का,
होली में मौसम आता है.
देवर-भाभी के रिश्ते पर 
तो रंग और चढ़ जाता है,
उनकी ठिठोलियाँ देख देख,
पति मन ही मन झल्लाता है.
सजनी की भींज गयी चोली,
सजन की मस्त निगाहों से,
रंग पिचकारी बेकार लगे,
जब होली का दिन आता है
बाबा,देवर से लगते हैं,
होली के देखो तो तेवर.
बुड्ढों के गलों पर भी जब,
होली में दम ख़म  आता है.
साली-जीजा,भाभी-देवर,
सजनी-साजन हैं मस्त  आज
बाबा, देवर से कूद रहे,
होली में यौवन आता है..
आप सभी मित्रों को होली की शुभकामनाएं...
      - अतुल 

गुरुवार, मार्च 03, 2011

पूछकर उन्हें पैदा करना

जिन्दगी और जमाने की कशमकश से

घबरा कर मेरे लड़के मुझसे पूछते हैं,
"हमें पैदा क्यों किया था?"
और मेरे पास इसके सिवा
कोई जवाब नहीं है
कि मेरे बाप ने भी मुझसे बिना पूछे
मुझे पैदा किया था,
और मेरे बाप से बिना पूछे उनके बाप ने, उन्हें
और मेरे बाबा से बिना पूछे उनके बाप ने, उन्हें...
जिन्दगी और जमाने की कशमकश
पहले भी थी,
अब भी है, शायद ज़्यादा,
आगे भी होगी, शायद और भी ज़्यादा।
तुम्हीं नई लीक धरना
अपने बेटों से पूछकर उन्हें पैदा करना॥    
                                                           - डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘नई लीक’

मंगलवार, मार्च 01, 2011

ऐ! खूबसूरत स्त्रियों...

 ऐ! खूबसूरत स्त्रियों 
तुम मुझे माफ़ कर देना....
हम तुम्हारे वक्ष और कटि पर 
तुम्हारी तारीफ़ में 
कविता न लिख पाएंगे...
और हाँ- हमारी कविता में 
न तो रात के चाँद का जिक्र होगा 
और न ही कोई सवेरे वाला 
चिड़ियों का गीत होगा.....
फूल-पत्ती/ पहाड़-हवा 
सूरज- नदी 
किसी का भी खूबसूरती पर 
न होगा एक शब्द भी ..
दोस्त! मेरी मजबूरी समझो ...
अपने पति की याद में 
सती होती औरतों की तरह 
मेरी कविता पूर्ण नंगी 
जन्म से मौत तक 
समर्पित है 
भूख से तड़पते हुए लोगों पर .....
जिनके पेट से छाती तक 
इस कदर चिपटी- कि
देखने वाले कुछ और ही अर्थ 
निकालते हैं उम्र भर 
तुम्ही बताओ - फिर भला 
किसी और के जिक्र तक क़ी
गुंजाइश कहाँ बचती................
 - अतुल 

जब मैं नेता बन जाऊंगा...

बलात्कार सिर्फ मेरे जैसे 
वीर पुरुषों के लिए 
करने की चीज है ,
मै तुम्हारे जैसा- कायर नहीं 
की कानून से डरूं 
संविधान से घबराऊँ 
वर्दियों में कसे 
सरकारी गुंडे देखकर 
भाग जाऊं...
मैं तुम्हें चुनौती देता हूँ -कि
तुम अपनी बहन बेटी की
हिफाजत 
जितनी कर सको करना 
मैं तुम्हारे घर आऊंगा 
लेकिन- आज नहीं कल 
जब मैं नेता बन जाऊंगा....
      जब मैं नेता बन जाऊंगा ...