गुरुवार, जनवरी 14, 2021

अब लगता है कुछ दिन पहले की दुनिया कितनी बेहतर थी...


अतुल कन्नौजवी

हे मनुष्यता के प्रतिपालक हे प्रति पालक हे मनुष्यता

क्या भूल हुई क्या गलती है अब क्षमा करो हे परमपिता।


अब राह दिखाओ दुनिया को मुश्किल सबकी आसान करो

हे कायनात के संचालक सारे जग का कल्याण करो।


ये कैसी विपदा है भगवन कैसा ये शोर धरा पर है

जो सदियों से जीवित है अब संकट उस परम्परा पर है।


जग त्राहि माम कर बैठा है नेतृत्व विफल है प्राणनाथ

शाखों के परिंदों को अपने इन्द्रियातीत मत कर अनाथ।


हे दसों दिशाओं के मालिक शहरों और गांवों के मालिक

आकाश में सूरज के मालिक धरती पर छांवों के मालिक।


साष्टांग दंडवत हूं महेश ये अन्न प्रलय अब रुक जाए

हे ब्रह्मलीन हे ब्रह्म तत्व के देवालय अब रुक जाए।


कितनी सुंदर रचना की है दुनिया की ये मिट न जाए

कण—कण से मेरी विनती है ये महाप्रलय अब रुक जाए।।

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बेबस हैं हम हे विश्वनाथ आह्वान आपका करते हैं

हर वस्तु यहां संदिग्ध लगे स्पर्श मात्र से डरते हैं।


अब विघ्न हरो हे महादेव देवाधिदेव हे जगदीश्वर

संकट में सारी पृथ्वी है अब आ जाओ आओ ईश्वर।


मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा और गिरिजाघर भी हैं बंद यहां

खारा है सलिल वायु की गति पड़ चुकी बहुत ही मंद यहां।


हे शक्तिपीठ हे भवप्रीता हे शूलधारिणी महातपा

हे रौद्रमुखी हे बहुलप्रिया हे पुरूषाकृति हे चामुंडा।


इक प्रश्न आज अस्तित्व और दुनिया की परम्परा पर है

हे आदिनाथ हे आदिशक्ति संकट इस वसुंधरा पर है।


मानव सभ्यता सशंकित है ये सारा भय अब रुक जाए

नित प्रतिपल होने वाला ये जीवन का क्षय अब रुक जाए


हे कृपानिधान परमसत्ता हे सृष्टि रचयिता परमतत्व

कण—कण से मेरी विनती है ये महाप्रलय अब रुक जाए।।

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आकाश पड़ गया है काला धरती पर इसकी छाया है

संकेत सृष्टि का है अथवा ये काल चक्र की माया है।


हर तरफ मौत का साया है सारी दुनिया संकट में है

तू तो कहता है हे ईश्वर अस्तित्व तेरा कण कण में है।


घर में बैठे हैं लोग आज देखो कितनी फुर्सत में हैं

सड़कों पर बिखरा सन्नाटा पशु पक्षी भी हैरत में हैं।


इन्द्रियां नियंत्रित हैं जीवन साधक समकक्ष बदल डाला 

इस बीमारी ने लोगों के जीवन का लक्ष्य बदल डाला।


सब असंतुष्ट थे व्याकुल थे बेचैनी सबके अन्दर थी 

अब लगता है कुछ दिन पहले की दुनिया कितनी बेहतर थी।


हे महापिता डर खत्म करो ये क्रूर समय अब रुक जाए

हे आदितत्व के संचालक पंचत्व निलय अब रुक जाए।


ये करुण प्रार्थना है जग की ईश्वर इसको स्वीकार करो

कण से मेरी विनती है ये आपदा प्रलय अब रुक जाए।।

आप इस कविता को इस लिंक पर क्लिक करके सुन भी सकते हैं 

https://youtu.be/9RhAyBXDKxk


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