मंगलवार, अक्तूबर 02, 2012

''अतीत की आंधी''

- अतुल कुशवाह
अतीत की आंधी
कोई मुझे बताए
मैं क्या करूं
मेरे वर्तमान से टकराता है
मेरा अतीत,
यह अतीत ठीक वैसा है
जैसे कोई काली आंधी
भरी दोपहर की गर्मी में
बारिश के साथ ठंडक का
सुख और चीजें नेस्तनाबूद कर
दुख भी दे जाती है
मेरे अतीत की आंधी
वर्तमान की मुंडेर पर रखे
मन के छप्पर को हिलाकर
रख देती है,
कोई तो बताए कि
आज का वर्तमान
और कल का अतीत
ऐसी ही आंधी बनकर
भविष्य के छप्पर को
उड़ाकर ले जाने की
चेष्टा में तो नहीं होगा...
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''अक्सर''

दोस्तो, जिंदगी कभी आदमीयत की रोजमर्रा से अजीरन भी होने लगती है, ऐसा मैंने महसूस किया है कभी। जहन में आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही होने वाला होता है। मेरे साथ भी हुआ है कई बार ऐसा। ये कविता भी उन्हीं सच्चाई के समंदर से निकले हुए अल्फाज हैं...
समृद्ध अतीत के माथे पर
अक्सर खिंच जाती हैं लकीरें
चिंतित भविष्य की
फैसलों की फर्श पर
क्यूं अक्सर
बिखर जाते हैं
बदलाव के मोती
खुशियों के आंगन में
टंगे मुस्कुराते गुब्बारों
पर अक्सर कोई चलाता है
गमों की गोलियां
बेवक्त पर काम आने वाला वक्त
अक्सर बदल जाता है आदमी की तरह
जब मौज मौसम की लेने निकलें तो
थम जाती हैं सुहानी हवाएं अक्सर
समझ आती है जब तलक हमको
नासमझी के कई काम हो जाते हैं,
जब तलक ढूंढ़ पाता हूं
वहीं और तमाम खो जाते हैं
अक्सर हम ख्वाबों की मानिंद
जमीं की जद पार कर जाते हैं
ऐसा भी कभी होता है कि
गम जागते रहते हैं और
हम सो जाते हैं।। - अतुल कुशवाह

सोमवार, अक्तूबर 01, 2012

रोके भी मुस्कुराना पड़ा है...

कर्ज गम का चुकाना पड़ा है,
रोके भी मुस्कुराना पड़ा है
सच को सच कह दिया था इसी पर
मेरे पीछे जमाना पड़ा है।
इक खुदा के न आगे झुके तो
दरबदर सर झुकाना पड़ा है
तुझको अपना बनाने की खातिर
सबको अपना बनाना पड़ा है।
क्या बताएं कि किन मुश्किलों में
जिंदगी को निभाना पड़ा है।
संगदिल जो है मशहूर नुजहत
शेर उनको सुनाना पड़ा है। -डा. नुजहत अंजुम