ये चाहती है हवा उसको आजमाऊँ न मैं,
कोई चिराग़ कहीं भी कभी जलाऊँ न मैं
सुकूत साया रहे इस ज़मीन पर हरदम
कोई सदा कोई फ़रियात लब पे लाऊँ न मैं
यूँ ही भटकता रहूँ उम्र भर उदास-उदास
सुराग़ बिछड़े हुओं का कहीं भी पाऊँ न मैं
सफ़र ये मेरा किसी तौर छोटा हो जाए
वो मोड़ आये कि जी चाहे आगे जाऊँ न मैं
भुला तो दूँ तेरे कहने पे तुझको दिल से मैं
मगर ये शर्त है, तुझको भी याद आऊँ न मैं
कोई चिराग़ कहीं भी कभी जलाऊँ न मैं
सुकूत साया रहे इस ज़मीन पर हरदम
कोई सदा कोई फ़रियात लब पे लाऊँ न मैं
यूँ ही भटकता रहूँ उम्र भर उदास-उदास
सुराग़ बिछड़े हुओं का कहीं भी पाऊँ न मैं
सफ़र ये मेरा किसी तौर छोटा हो जाए
वो मोड़ आये कि जी चाहे आगे जाऊँ न मैं
भुला तो दूँ तेरे कहने पे तुझको दिल से मैं
मगर ये शर्त है, तुझको भी याद आऊँ न मैं
प्रिय श्रीअतुलजी,
जवाब देंहटाएं" तुझको भी याद आऊँ न मैं"
अद्भुत रचना, आप को ढ़ेरों बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
जिंदगी के शब्दशः अह्साशों को अभिव्यक्त करने की कोशिश को असीशने के लिए आभार..Sadar Atul
जवाब देंहटाएंभुला तो दूँ तेरे कहने पे तुझको दिल से मैं
जवाब देंहटाएंमगर ये शर्त है, तुझको भी याद आऊँ न मैं
bahut khoob.atulji.