सोमवार, जनवरी 31, 2011

मेरी चाहत


इस आसमान को मेरे आगोश में सिमटना होगा
क्योंकि मेरी चाहत इक नया आसमान बनाने की है।

हटना होगा तूफानों को मेरे रास्ते से ,
क्योंकि मेरी चाहत मंजिलों को पाने की है।

चमकना होगा मुझे इक नया सूरज बनकर ,
क्योंकि मेरी चाहत पत्थरों को पिघलाने की है।

मिटाना होगा सागर को अपना खारापन ,
क्योंकि मेरी चाहत हर- एक बूँद के अस्तित्व को दिखाने की है।

सिमटना होगा संसार को मेरी मुट्ठी में,
क्योंकि मेरी चाहत जमीन को आसमान से मिलाने की है।

इस वक्त को देना होगा हिसाब हर एक पल का,
क्योंकि मेरी चाहत हर-एक पल को अपना बनाने की है ।

सामना करना होगा यहाँ सभी को हर मुश्किल का ,
क्योंकि मेरी चाहत एक नया जहाँ बनाने की है।

करना होगा विश्व को इसका आवाहन ,
क्योंकि मेरी चाहत विश्वमंच पर ख़ुद को दिखाने की है।।

मेरी कविता...


सत्ता के गलियारे में
बंदूकें बोएगी मेरी कविता.....
तुम्हारे पैर के
नाखूनों से खोपडी तक
बारूद धोएगी मेरी कविता.......
सरकार को बता दो -
गरीबी में जी लेगी
भूखे पेट रह लेगी
मगर-तुमसे पाँव फंसाकर
कभी नही सोयेगी मेरी कविता......