सोमवार, दिसंबर 24, 2012

मुझे सपना सच होने का डर है

मुझे माफ कर दो,
दोस्तों
कल रात नई दिल्ली में
मैं सोनिया के घर
कुछ बलात्कारी जबरन
घुस गए
कर डाला ‘घर’ का ही
सामूहिक रेप
मैं बचा न सका..
खुद बच गया
इस कुकृत्य का शिकार होने से
अखबारों ने छापा
‘सोनिया के साथ रेप’
टीवी पर ब्रेकिंग
सहम गया देश
हिल गया सिंहासन
मैं डर गया, बचा न सका अस्मत
ताकतवर महिला सोनिया
के घर बाडीगार्ड था
सो, चली गई नौकरी
नौकरी खोने के गम में
सिसक ही रहा था,
मां ने जगा दिया सिर पर
हाथ रखकर, बोलीं
बेटा क्या हुआ..
कोई डरावना सपना था क्या
मैंने कहा, हां मां
बहुत डरावना
अब डर यह है कि कहीं
सुबह का यह सपना
सच न हो जाए
क्योंकि कल रात
मैं पेशाब करके
बिना हाथ धोए ही सो गया था... अतुल

गुरुवार, नवंबर 01, 2012

कंवारे भी मनाएंगे जो करवाचौथ आई है..

कहीं है धूप का साया कहीं बदली सी छाई है,
किसी ने पा लिया प्रेमी किसी की सौत आई है,
मोहब्बत हो गई जिसको उसे शादी से क्या करना,
कंवारे भी मनाएंगे जो करवाचौथ आई है..- अतुल

मंगलवार, अक्तूबर 02, 2012

''अतीत की आंधी''

- अतुल कुशवाह
अतीत की आंधी
कोई मुझे बताए
मैं क्या करूं
मेरे वर्तमान से टकराता है
मेरा अतीत,
यह अतीत ठीक वैसा है
जैसे कोई काली आंधी
भरी दोपहर की गर्मी में
बारिश के साथ ठंडक का
सुख और चीजें नेस्तनाबूद कर
दुख भी दे जाती है
मेरे अतीत की आंधी
वर्तमान की मुंडेर पर रखे
मन के छप्पर को हिलाकर
रख देती है,
कोई तो बताए कि
आज का वर्तमान
और कल का अतीत
ऐसी ही आंधी बनकर
भविष्य के छप्पर को
उड़ाकर ले जाने की
चेष्टा में तो नहीं होगा...
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''अक्सर''

दोस्तो, जिंदगी कभी आदमीयत की रोजमर्रा से अजीरन भी होने लगती है, ऐसा मैंने महसूस किया है कभी। जहन में आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही होने वाला होता है। मेरे साथ भी हुआ है कई बार ऐसा। ये कविता भी उन्हीं सच्चाई के समंदर से निकले हुए अल्फाज हैं...
समृद्ध अतीत के माथे पर
अक्सर खिंच जाती हैं लकीरें
चिंतित भविष्य की
फैसलों की फर्श पर
क्यूं अक्सर
बिखर जाते हैं
बदलाव के मोती
खुशियों के आंगन में
टंगे मुस्कुराते गुब्बारों
पर अक्सर कोई चलाता है
गमों की गोलियां
बेवक्त पर काम आने वाला वक्त
अक्सर बदल जाता है आदमी की तरह
जब मौज मौसम की लेने निकलें तो
थम जाती हैं सुहानी हवाएं अक्सर
समझ आती है जब तलक हमको
नासमझी के कई काम हो जाते हैं,
जब तलक ढूंढ़ पाता हूं
वहीं और तमाम खो जाते हैं
अक्सर हम ख्वाबों की मानिंद
जमीं की जद पार कर जाते हैं
ऐसा भी कभी होता है कि
गम जागते रहते हैं और
हम सो जाते हैं।। - अतुल कुशवाह

सोमवार, अक्तूबर 01, 2012

रोके भी मुस्कुराना पड़ा है...

कर्ज गम का चुकाना पड़ा है,
रोके भी मुस्कुराना पड़ा है
सच को सच कह दिया था इसी पर
मेरे पीछे जमाना पड़ा है।
इक खुदा के न आगे झुके तो
दरबदर सर झुकाना पड़ा है
तुझको अपना बनाने की खातिर
सबको अपना बनाना पड़ा है।
क्या बताएं कि किन मुश्किलों में
जिंदगी को निभाना पड़ा है।
संगदिल जो है मशहूर नुजहत
शेर उनको सुनाना पड़ा है। -डा. नुजहत अंजुम

सोमवार, अगस्त 06, 2012

अलविदा मोहब्बत की परी

पहले तो तुम अनुराधा थीं, पर फिजा बन गई थीं जबसे,
सारे दिन और सारी रातें छुप-छुपकर मिलते हैं तबसे।। - अतुल
मोहब्बत आसमान से इंसानी दिल की जमीं पर उतरने वाली वह नियामत है, जिसमें खुदा खुद मौजूद होता है। हिंदुस्तान में समाज हमेशा से इश्क के विरोधगीत गाता रहा है। इश्क और मोहब्बत दिल के आसमां पर एक ऐसे आभामंडल की तरह छा जाता है कि इसके शिवा फिर कुछ नहीं दिखता। यही आभामंडल हरियाणा की अनुराधा बाली और चन्द्रमोहन के हृदयांगन पर छा गया। ऐसा छाया कि दोनों हिंदू से मुसलमान बन गए और नाम रख लिए फिजा और चांद मोहम्मद। कुछ समय बाद मोहब्बत की फिजा का चांद तो वेवफाई के बादलों में गुम गया, लेकिन प्यार की फिजा का रुत नहीं बदला। कहते हैं कि अगर किसी को दिल से चाहो तो पूरी कायनात साथ देने लगती है, लेकिन फिजा की चाहत में क्या कमी थी? खैर कुछ भी हो, लेकिन सात अगस्त 2012 को फिजा में एक अदृश्य कयामत ने मोहब्बत की परी को जहां से अलविदा कर दिया। आज फिजा तो नहीं रहीं, लेकिन ‘फिजाओं’ में तुम्हारी दास्तां सदियों तक महकेगी, जिसे हर रोज रंग-रोशनी से सीना फुलाने वाला ‘चांद’ भी पूरी उम्र महसूस करेगा...।
ऐ! आसमां तुम खुद की बुलंदी का कितना भी अभिमान कर लो,
लेकिन जमीं की खातिर फिर आंसू बहाते क्यूं हो,
तुम्हें तो किसी भी सहारे की जरूरत नहीं
फिर जमीं का दामन भिगोते क्यूं हो।। - अतुल

शनिवार, जून 09, 2012

रहता हूँ आजकल मैं मोहब्बत के शहर में.

- अतुल कुशवाह  
सन्देश बनके आया हूँ मैं ख़त के शहर में,
रहता हूँ आजकल मैं मोहब्बत के शहर में.

फूलों से जो निकली है वो खुशबू भी साथ है,
हूँ सादगी के साथ अदावत के शहर में.

हैं लोग सब अपने यहाँ कोई न पराया.
रहता है बनके सुख यहाँ दुःख-दर्द का साया,

हो यकीं गर ना तो खुद आकर के देख लो,
मौजों की रवानी है इस फुरसत के शहर में...

रविवार, मई 27, 2012

भरी महफिल में तनहाई मुझे पहचान लेती है..

हमारी दर्द की चीखें भला अब कौन सुनता है,
ये बस्ती पत्थरों की हो गयी है आजकल लोगों।।
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यहां हर ओर लाखों लोग बेहद खूबसूरत हैं,
न जाने कौन है वो शख्श जिसकी हम जरूरत हैं।।
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अगर बादल तुम्हारा है तो ये धरती हमारी है,
वफ़ा की राह में हर पल मुहब्बत ही तो हारी है,
अगर तुम हो शहंशाहे हसीं खुशहाल मौसम तो,
जवां रुत की बहारें अंजुमन की सब हमारी हैं.
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सितारों रातभर किसको उजाला देते रहते हो,
अभी देखा नहीं है तुमने शायद इस जमीं का चांद।।
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न तो मैं शोर करता हूं ये फिर भी जान लेती है,
भरी महफिल में तनहाई मुझे पहचान लेती है।।
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तुम्हारे लब से जो टपका, न टपकेगा वो अंबर से,
तुम्हारी जुल्फ के बादल बरसते हैं बिना गरजे।।
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फिसल जाऊं तुम्हारे लब की इस बेचैन फिसलन पर,
रपटती हैं तेरी सांसें कभी मदहोशियों में जब।।
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बहुत ही जल्द देखोगे धमाके मेरी फितरत के
अभी तो लग्जिशों की शाम में साजिश रचाई है।।
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बहुत तन्हा हूं कोई रंग जमाया जाये
चलो फिर आज उसी रंज में आया जाये,
कहीं उदास दिखे गीत अगर महफिल में
खुशी का साज इसी शाम सजाया जाये।।- अतुल

रविवार, अप्रैल 15, 2012

बजे गलियों में जो पायल तो तेरी याद आती है..

- अतुल
जहां खींची गई हरसू फकत मौजों कि रेखा है,
सियासत के नवासों ने कभी क्या दर्द देखा है.
अजाबों-इज्तिराबों की नदी जिस ओर बहती है,
वहां रहते हैं दिलखुश लोग, जीने का सलीका है।।
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बजे जिस ओर मोबाइल तो तेरी याद आती है..
मिले कस्ती को जो साहिल तो तेरी याद आती है,
न जाने किस गली में खो गया हूँ मैं नहीं मालूम,
बजे गलियों में जो पायल तो तेरी याद आती है..
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तबस्सुम का यही परदा नजर में डाल दो मेरी,
किसी की आंख से बहता हुआ आंसू न दिख जाये।

मंगलवार, मार्च 13, 2012

लो.. समंदर हो गया हूं मैं

बुझा लो प्यास जितनी हो
लो.. समंदर हो गया हूं मैं,
उजालों की सुहानी बज्म में
फिर से सिकंदर हो गया हूं मैं,
कहो क्या हाल हैं उनके, जिन्होंने
शूल राहों में मेरी फेंके थे,
खबर उनको जरा ये कर देना
कांटों के बीच रहकर के,
लो फूल हो गया हूं मैं...
बुझा लो प्यास जितनी हो,
लो.. समंदर हो गया हूं मैं।। - अतुल कुशवाह

मंगलवार, फ़रवरी 14, 2012

तुम्हारी मुस्कुराहट को गजल हमने बनाया है

मुहब्बत में तुम्हारा ही लबों पर नाम आया है,
भ्रमर की गुनगुनाहट का कली पर रंग छाया है।
यहां हर बज्म तेरे नाम से गुलजार होती है,
तुम्हारी मुस्कुराहट को गजल हमने बनाया है।। - - अतुल कुशवाह

‘मौत इसके समान है

- अतुल कुशवाह ‘शांतनु’
 दुनिया में सबसे बड़ी दहशत क्या है..? वह दोजख जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते..? भूख सूर्य की रोशनी में जुगनू की तरह गुम हो जाती है.. और कुदरत का कोई भी  करिश्मा उस बेचैनी को खत्म नहीं कर सकता...! जिंदगी हर मोड़ पर अजीरन होने लगती है, दर्द के दस्तावेज सृजन की हवाओं में फरफराने लगते हैं..। और ऐसा लगता है कि अब भगवान भी इसमें मदद के काबिल नहीं रहा..। अरे हां! यही तो वह चीज है, जो बिलकुल मौत जैसी है, मौत के समान है। जिसके लिए आज तक हजारों बिलखते लोगों के आंसुओं पर तरस खाकर वह पत्थरदिल अदृश्य शक्ति किसी मरे इंसान को जिंदा करने नहीं आई। ठीक ऐसा ही होता है, जब किसी को किसी से बेइंतहा प्रेम होता है और फिर वह उसकी चाहत बदल जाए, तो सोचिए फिर उसका यह दुख कौन दूर कर सकता है। लोग सिर्फ भूल जाने और हौसला देने की बातें ही कर सकते हैं, उसका प्यार वापस नहीं दिला सकते। जैसे आदमी के शरीर से आत्मा निकल जाती है, ठीक वैसा ही कुछ इसमें भी हो जाता है। सिर्फ शरीर के जिंदा रहने से हम किसी का जिंदा रहना नहीं मानते। जीवित वह है, जिसमें सपने, उड़ान भरने का हौसला और तमाम ख्वाहिशें जिंदा होती हैं, अन्यथा यह आत्मा शरीर की कब्र में दफन होकर रह जाती है। प्यार अगर जिंदगी को मयस्सर हो जाए तो यह जिंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफा है और अगर टूट जाए तो जिंदगी की सबसे बड़ी सजा भी यही है। कई बार इंसान को आवारामिजाजी मोहब्बत से ही मिलती है। हम जिसे प्यार करते हैं, मतलब जिसके सपनों में खुद को तकसीम कर देते हैं, उसके खयालों में खुद को नायक या नायिका के रूप में स्थापित कर जीवन को इंन्द्रधनुष जैसा देखने लगते हैं, मगर जैसे इन्द्रधनुष आंखों के सामने से कुछ पलों के बाद ओझल हो जाता है और आकाश स्याह सफेद दिखने लगता है, कोई रंग नहीं दिखता, सब बेरंग हो जाता है, वैसे ही जिंदगी के झंझावातों के बीच बेआवाज टूटने वाली मोहब्बत के बाद की जिंदगी का हाल होता है। अगर आपके हृदय में किसी के लिए सच्ची चाहत है, तो मेरा दावा है कि आप उसके बिना किसी भी परिस्थिति में नहीं रह सकते। रब जी दुश्मनों को भी प्रेम में जुदाई का दर्द  न दें, क्योंकि यह दर्द मृत्यु तक सालता रहेगा।

सोमवार, जनवरी 23, 2012

गजल


- अतुल कुशवाह
हर रोज आफिस से निकलते हैं तो घर जाते हैं
चार दीवारों में जाकर के ठहर जाते हैं,

इस अंजान शहर में तो मेरा कोई नहीं
हां मगर अक्सर हम तनहाई के घर जाते हैं।

मुद्दतें बीत गर्इं उनको तो देखा ही नहीं
जो मुझे हर रात सपनों में नजर आते हैं,

आज भी आंखों में बसा है वो चेहरा उनका
दिल से उन्हें याद कर सांसों में ठहर जाते हैं,

जब किसी को प्रेम का पैगाम मिलते देखूं तो
ख्वाबों की गलियों में खयालों से गुजर जाते हैं।।

किसी तितली को फूलों से उड़ा तो मैं नहीं सकता

- अतुल कुशवाह


मैं जब भी प्रेम लिखता हूं वफाएं छूट जाती हैं
हसीं मौसम जो लिखता हूं फिजाएं रूठ जाती हैं,
तुम्हें बतला रहा हूं मैं स्वयं के दर्द का किस्सा
उन्हें आवाज देता हूं सदाएं टूट जाती हैं।।
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जवानी में मोहब्बत की छोटी सी भूल करना
कहता रहे जमाना इससे नहीं तू डरना, 
तेरे लिए लाया हूं जिंदगी से चुराकर 
इक आंख मारकर मेरा तोहफा कबूल करना।।
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लिखा जो नाम दिल में है मिटा वो मैं नहीं सकता
आंख से अश्क का दामन छुड़ा तो मैं नहीं सकता,
वो किसके साथ होगा अब कहां, कैसा खुदा जाने
किसी तितली को फूलों से उड़ा तो मैं नहीं सकता।।
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धरा की धूल हूं मैं तुम गगन के चांद तारे हो
समर्पित फूल हूं मैं, तुम प्रणय के देव न्यारे हो,
सुबह की लालिमा और भोर का सिंदूर तुम ही हो
क्षमा करना मुझे मैं भूल हूं तुम रब हमारे हो।।
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Cute Love Shayari For Girlfriend-Boyfriend, Best Love Sms Quotes: मोहब्बत इश्क का मुजरिम यहां सारा जमाना है..

- अतुल कन्नौजवी
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सजा से तुम नहीं डरना मेरा दिल कैदखाना हैमो
हब्बत इश्क का मुजरिम यहां सारा जमाना है,
सनम तुमने अगर मुझसे कभी जो वेबफाई की
तुम्हें तारीख पर दिल की अदालत रोज आना है।।

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जमीं पर हूूं मगर ख्वाहिश हमारी आसमानी है
इसे तुम गौर से सुनना मोहब्बत की कहानी है
जिसे चाहा, नहीं हासिल हुआ तो क्या गिला करना
मेरी आंखों में ये आंसू नसीबों की निशानी है।।
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मुहब्बत में जो अपनी जीत को भी हार कर लेगा
उसे मेरी तरह कोई भला क्या प्यार कर लेगा
यकीनन बेवफा है वो, मगर ये भी हकीकत है
अगर वो लौट आए, दिल उसे स्वीकार कर लेगा।। 

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शनिवार, जनवरी 14, 2012

दिल्ली....


-  अतुल कुशवाह 
मैनें जब भी देखा है 
एक छोटे बच्चे के तबस्सुम की तरह
पुरानी चीजों को विदा कर दिया तूने,
तू पुरानी से नई हो गई
दरख्तों के जंगल जला दिए
इमारतों का हिसार खड़ा करके
चारो तरफ बेशुमार चेहरे
तुझमें आने को, तुझसे जाने को
यहाँ एक-दो नहीं हजार मोहरे
अब रह ही क्या गया है
इन ऊंची इमारतों के शिवा
जंगलों की कब्र में दफ़न
हैं ताजी खुशफरास हवा..
और बचा ही क्या है अब इसके शिवा....
पता चले तो बताना..कि
कहाँ है इस शहर में उन पुरानी 
बहारों का आशियाना...