मंगलवार, नवंबर 29, 2011

बदनाम शोहरत की तरह हूं मैं..

 कभी धड़कन, कभी मासूम चाहत की तरह हूं मैं,
मुझे दिल में जरा रख लो मोहब्बत की तरह हूं मैं।

मेरा घर आएगा तो घर भी जाऊंगा अभी लेकिन,
हवा के डाकिए के हाथ में खत की तरह हूं मैं।

वो मेरे वास्ते दीवार बनते हैं तो बनने दो,
कि पहले से ही हर दीवार पर छत की तरह हूं मैं।

‘अतुल’ अब क्या मिटा पाएगी मेरा नाम ये दुनिया,
जमाने भर में जब बदनाम शोहरत की तरह हूं मैं।
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जिसने मेरा निकाह कराया परी के साथ,
वीवी हुई फरार उसी मौलवी के साथ।
मैंने दिया जवाब हुआ मौलवी भी चित,
तू मेरी वी के साथ, मैं तेरी वी के साथ।।
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मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ देखा नहीं जाता,
कहा जाता है उसे बेवफा समझा नहीं जाता।।


बुधवार, नवंबर 09, 2011

तूफान जा रहे थे उनके साथ नाव में..

  मैं जिस राह से जाऊं वो ही तेरा भी रस्ता हो,
सुनाई दे मुझे हरपल जो दिल तेरा धड़कता हो।
मेरे हमराह बस मेरी यही छोटी सी ख्वाहिश है,
तेरी बाहों में दम निकले, कफन तेरा दुपट्टा हो।। - अतुल

  गजल के चाहने वालों को अतुल का नमस्कार।। कई बार ऐसा होता है कि राह चलते कोई दिख जाता है तो घर तक उसकी यादें या कई-कई दिन तक साथ रहती हैं। ऐसी अतीत की तमाम स्मृतियां हमारे साथ भी जुड़ी हैं। एक सुहानी शाम याद है मुझे। मुंबई के जुहू बीच और सामने साहिल से टकराती समंदर की लहरें। इसी बीच कोई सपना आया, और वो कुछ इस तरह। गजल के रूप में आपके सामने पेश कर रहा हूं। पसंद आए तो जरूर सूचित करना....
जब तक खड़ा रहा मैं दरख्तों कि छांव में,
था शोर इक अजीब सा साहिल के गांव में।

निकले उधर से जब वो समंदर ठहर गया,
तूफान जा रहे थे उनके साथ नाव में।

सूरत को क्या बयां करूं वो हुस्न नूर था,
नजरें थीं आसमान पर इतना गुरूर था,

पायल कि वो झनकार सुन रहा हूं आज तक,
कारीगरी थी ऐसी कोई उसके पांव में।

थे होंठ सुर्ख और बदन मरमरी सा था,
था रूप कोई अप्सरा का या परी का था,

जुल्फों में घटाएं थीं चेहरे पे धूप थी,
सूरज भी आ गया था आशिकी के दांव में।।- अतुल

मंगलवार, नवंबर 08, 2011

किसी से दूर हैं हम भी...

- अतुल कुशवाह
उस खामोश बस्ती में कई तूफान रहते हैं,
मुरादें लाख पूरी हों, मगर अरमान रहते हैं.
फरिश्तों को बता दो अब गुरूरे-हुस्न मत करना,
इंसानों के वश में आजकल भगवान रहते हैं।।

जमाने में मोहब्बत के नशे में चूर हैं हम भी,
नाम बदनाम हो कितना मगर मशहूर हैं हम भी.
जमीं की याद में आंसू बहाते आसमां सुन लो,
जमीं से दूर गर तुम हो, किसी से दूर हैं हम भी।।