गुरुवार, दिसंबर 29, 2011

कर दो जहाँ में ऐसा कुछ कमाल दोस्तों..

लो आ गया है फिर से नया साल दोस्तों,
धरती पे लिख दो आसमां का हाल दोस्तों,
ठहरा रहे ये वक्त हमेशा इसी तरह,
कर दो जहाँ में ऐसा कुछ कमाल दोस्तों..- अतुल

वक्त की शाख से ग्यारह का पत्ता टूट कर गिर रहा है। कलेवर बदलेगा या नहीं क्या पता मगर कैलेंडर तो बदलेगा ही। दो हजार ग्यारह के पहले सूरज को देखकर किसने सोचा होगा कि वक्त इतना बेरहम होगा कि अर्थव्यवस्थायें, संस्थायें, साख और लोग ...बस घाव गिनते रह जाएंगे। काल का गाल बड़ा विकराल है और समय की अपनी एक निपट अबूझ, अप्रत्याशित और शाश्‍वत गति है। इसलिए तारीख बदलने से अतीत कभी नहीं मरता। वह तो वर्तमान के तलवे में कांटे की तरह धंसा है। ग्यारह की चोटों से बारह जरुर लंगड़ायेगा। मगर  भरोसा रखिये, यही वक्त उन चोटों पर मरहम भी लगायेगा।, वक्त सौ मुंसिफों का मुंसिफ है, वक्त आएगा इंतजार करो।।, वक्त की बेरहमी को याद करने के लिए और उम्मीद के मरहम तलाशने के लिए आपके सामने एक श्रंखला लेकर जल्द आ रहा हूँ.. , आप सब अपने अपने स्नेह और आशीष से ''अतुल'' को पोसते रहे हैं। आशीर्वाद बनाये रखियेगा। बड़ा संबल मिलता है। निराला जी ने लिखा है ... पुन: सवेरा एक बार फेरा है जी का... वक्त का फेरा बारह का सवेरा लेकर दरवाजे पर पहुंचा है। दरवाजा खोलिये! स्वागत करिये!, 2012 सुखद, सुरक्षित और मांगलिक हो।