नमस्ते दोस्तों, कुछ कुछ पंक्तियां सालों पहले की लिखी मेल के ड्राफ्ट में दर्ज थीं। आज देखीं तो सोचा कि इन्हें ठीकठाक आकार में ढालकर शेर बनाया जाए। करीब दस मिनट की मशक्कत के बाद ये तीन कुछ मिसरे हो सके। अखबार में काम करता हूं। इस समय आॅफिस जाने का अलार्म बज उठा है। इसलिए अब और अधिक घर पर कंप्यूटर स्क्रीन के सामने नहीं बैठ सकता। लिहाजा जितना लिख सका, उतना अभी पोस्ट कर देता हूं। उम्मीद करता हूं कि आप सबको पसंद आएंगे।
कोई कीमत नहीं उस मां के तोहफे की, जो बेटों को
दुआओं में जनमदिन पर हजारों साल देती है
मैं घर से जब भी निकलूं मां हमेशा मेरे थेले में
जो कुछ भी भूल जाता हूं वो चीजें डाल देती है
न जाने कौन सी जादूगरी है मां के हाथों में
वो सर पर हाथ रखकर सौ बलाएं टाल देती है।। # अतुल कन्नौजवी
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