शुक्रवार, जून 24, 2011

मेरा फतवा उनका सर कलम करने का...

मेरा भी फतवा उनका सर कलम करने का,
जिनकी हवेलियों ने
धूप रोक ली झोपडी की...
जिनकी हवस ने पूरा चाँद ढककर
रात और काली कर दी गरीब की...
मेरा भी फतवा उनका सर कलम करने का,
जिनकी वासनाओं ने हवाओं को
इस कदर बरगलाया -कि
आत्महत्याओं का तूफ़ान
थम नहीं रहा बस्ती में...
मेरा फतवा उनका सर कलम करने का
जो शर्म के नाम पर 
आदमी का 
सर कलम करने का फतवा देते हैं.
कुत्ता पालते हैं/आदमी मरते हैं....
मेरा फतवा उनका सर कलम करने का
जो अपने मांस के लोथड़े पर
सदन में खद्दर लपेटे हुए
कार्यालयों में गर्दन पर
साहबियत कि टाई ऐंठे हुए.
जिन्हें गरीब की बात पर भी
घिन आ जाती है....----अतुल कुशवाह 

शुक्रवार, जून 10, 2011

मेरे पीछे मत आओ..

आज भरी दोपहर
बीच चौराहे पर 
मैंने अपनी परछाइयों के
पैर पकड़कर
साफ़ कह दिया
कि मेरे पीछे-पीछे मत आओ
साथ ही चलना है
तो अंधेरों तक चलो
वर्ना बेहतर है कि
ये सफ़र मुझे 
अकेले ही पूरा करने दो....- अतुल 

रविवार, जून 05, 2011

नेताओं से अच्छे ये सूअर के बच्चे


मुझे इन नेताओं से अच्छे
ये सुअर के बच्चे लगे...
जो रोजाना मेरी गली तो घूम जाते हैं,
और अपने स्तर से गन्दगी खाकर
कुछ तो साफ़ कर जाते हैं...
लेकिन, वो कमबख्त
आएगा सिर्फ चुनाव के वक्त
बस, वोट मांगने...
और ये सफाई देने कि
मैं...सुअर से अच्छा हूँ और कुछ नहीं....- अतुल

गुरुवार, जून 02, 2011

किसी का मख़मली अहसास मुझको गुदगुदाता है



किसी का मख़मली अहसास मुझको गुदगुदाता है
ख़यालों में दुपट्टा रेशमी इक सरसराता है

ठिठुरती सर्द रातों में मेरे कानों को छूकर जब
हवा करती है सरगोशी बदन यह कांप जाता है

उसे देखा नहीं यों तो हक़ीक़त में कभी मैंने
मगर ख़्वाबों में आकर वो मुझे अकसर सताता है

नहीं उसकी कभी मैंने सुनी आवाज़ क्योंकि वो
लबों से कुछ नहीं कहता इशारे से बुलाता है

हज़ारों शम्स हो उठते हैं रौशन उस लम्हे जब वो
हसीं रुख़ पर गिरी ज़ुल्फ़ों को झटके से हटाता है

किसी गुज़रे ज़माने में धड़कना इसकी फ़ितरत थी
पर अब तो इश्क़ के नग़मे मेरा दिल गुनगुनाता है

कहा तू मान दीवाने दवा कुछ होश की कर ले
ख़याली दिलरुबा से इस क़दर क्यों दिल लगाता है !