सोमवार, अगस्त 06, 2012

अलविदा मोहब्बत की परी

पहले तो तुम अनुराधा थीं, पर फिजा बन गई थीं जबसे,
सारे दिन और सारी रातें छुप-छुपकर मिलते हैं तबसे।। - अतुल
मोहब्बत आसमान से इंसानी दिल की जमीं पर उतरने वाली वह नियामत है, जिसमें खुदा खुद मौजूद होता है। हिंदुस्तान में समाज हमेशा से इश्क के विरोधगीत गाता रहा है। इश्क और मोहब्बत दिल के आसमां पर एक ऐसे आभामंडल की तरह छा जाता है कि इसके शिवा फिर कुछ नहीं दिखता। यही आभामंडल हरियाणा की अनुराधा बाली और चन्द्रमोहन के हृदयांगन पर छा गया। ऐसा छाया कि दोनों हिंदू से मुसलमान बन गए और नाम रख लिए फिजा और चांद मोहम्मद। कुछ समय बाद मोहब्बत की फिजा का चांद तो वेवफाई के बादलों में गुम गया, लेकिन प्यार की फिजा का रुत नहीं बदला। कहते हैं कि अगर किसी को दिल से चाहो तो पूरी कायनात साथ देने लगती है, लेकिन फिजा की चाहत में क्या कमी थी? खैर कुछ भी हो, लेकिन सात अगस्त 2012 को फिजा में एक अदृश्य कयामत ने मोहब्बत की परी को जहां से अलविदा कर दिया। आज फिजा तो नहीं रहीं, लेकिन ‘फिजाओं’ में तुम्हारी दास्तां सदियों तक महकेगी, जिसे हर रोज रंग-रोशनी से सीना फुलाने वाला ‘चांद’ भी पूरी उम्र महसूस करेगा...।
ऐ! आसमां तुम खुद की बुलंदी का कितना भी अभिमान कर लो,
लेकिन जमीं की खातिर फिर आंसू बहाते क्यूं हो,
तुम्हें तो किसी भी सहारे की जरूरत नहीं
फिर जमीं का दामन भिगोते क्यूं हो।। - अतुल