शनिवार, जनवरी 16, 2021

(गज़ल) इश्क़ में जलने लगती है मशाल आंखों में

अतुल कन्नौजवी

atulkavitagazal.blogspot.com
प्रतीकात्मक चित्र।      फोटो: साभार

पूछते क्या हो यूं लेकर सवाल आंखों में
पढ़ सको पढ़ लो मेरा सारा हाल आंखों में

देखना था कि समंदर से क्या निकलता है
बस यही सोच के फेंका था जाल आंखों में

वो मिरे सामने आती है झुकाए पलकें
हया को रखा है उसने संभाल आंखों में

ठीक हो जाती है नासाज़ तबीयत कैसे
जरूर रखती है वो अस्पताल आंखों में

वो अगर साथ है तो तीरगी से क्या डरना
इश्क में जलने लगती है मशाल आंखों में।।
  

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह...गज़ल का नया तसव्वुर...ठीक हो जाती है नासाज़ तबीयत कैसे
    जरूर रखती है वो अस्पताल आंखों में...वाह अतुल जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत शुक्रिया आदरणीय अलकनंदा जी, हृदय से आभार 🙏

      हटाएं
  3. सादर प्रणाम सर, आपका आशीष मिला, बहुत संबल मिलता है 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत ही शानदार लिखा आपने ....
    ठीक हो जाती है नासाज़ तबीयत कैसे
    जरूर रखती है वो अस्पताल आंखों में
    क्या कहने इन पंक्तियों के ....

    जवाब देंहटाएं