अतुल कन्नौजवी
पढ़ सको पढ़ लो मेरा सारा हाल आंखों में
देखना था कि समंदर से क्या निकलता है
बस यही सोच के फेंका था जाल आंखों में
वो मिरे सामने आती है झुकाए पलकें
हया को रखा है उसने संभाल आंखों में
ठीक हो जाती है नासाज़ तबीयत कैसे
जरूर रखती है वो अस्पताल आंखों में
वो अगर साथ है तो तीरगी से क्या डरना
इश्क में जलने लगती है मशाल आंखों में।।
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जवाब देंहटाएंवाह...गज़ल का नया तसव्वुर...ठीक हो जाती है नासाज़ तबीयत कैसे
जवाब देंहटाएंजरूर रखती है वो अस्पताल आंखों में...वाह अतुल जी
बहुत शुक्रिया आदरणीय अलकनंदा जी, हृदय से आभार 🙏
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल
बहुत बहुत आभार आदरणीय अनीता जी 🙏🙏🙏
हटाएंसादर प्रणाम सर, आपका आशीष मिला, बहुत संबल मिलता है 🙏
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही शानदार लिखा आपने ....
जवाब देंहटाएंठीक हो जाती है नासाज़ तबीयत कैसे
जरूर रखती है वो अस्पताल आंखों में
क्या कहने इन पंक्तियों के ....
बहुत बहुत आभार आदरणीय सदा जी🙏
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