सोमवार, अक्तूबर 01, 2012

रोके भी मुस्कुराना पड़ा है...

कर्ज गम का चुकाना पड़ा है,
रोके भी मुस्कुराना पड़ा है
सच को सच कह दिया था इसी पर
मेरे पीछे जमाना पड़ा है।
इक खुदा के न आगे झुके तो
दरबदर सर झुकाना पड़ा है
तुझको अपना बनाने की खातिर
सबको अपना बनाना पड़ा है।
क्या बताएं कि किन मुश्किलों में
जिंदगी को निभाना पड़ा है।
संगदिल जो है मशहूर नुजहत
शेर उनको सुनाना पड़ा है। -डा. नुजहत अंजुम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें