- अतुल कुशवाह
सन्देश बनके आया हूँ मैं ख़त के शहर में,
रहता हूँ आजकल मैं मोहब्बत के शहर में.
फूलों से जो निकली है वो खुशबू भी साथ है,
हूँ सादगी के साथ अदावत के शहर में.
हैं लोग सब अपने यहाँ कोई न पराया.
रहता है बनके सुख यहाँ दुःख-दर्द का साया,
हो यकीं गर ना तो खुद आकर के देख लो,
मौजों की रवानी है इस फुरसत के शहर में...
क्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि का लिंक दिनांक 11-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगा। सादर सूचनार्थ
वाह अतुल जी बहुत सुंदर शायरी है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
वाह शानदार प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंवाह ||||
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
प्रेम अनुभूति.....
सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसुंदर गजल....
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna..
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