शनिवार, जनवरी 14, 2012

दिल्ली....


-  अतुल कुशवाह 
मैनें जब भी देखा है 
एक छोटे बच्चे के तबस्सुम की तरह
पुरानी चीजों को विदा कर दिया तूने,
तू पुरानी से नई हो गई
दरख्तों के जंगल जला दिए
इमारतों का हिसार खड़ा करके
चारो तरफ बेशुमार चेहरे
तुझमें आने को, तुझसे जाने को
यहाँ एक-दो नहीं हजार मोहरे
अब रह ही क्या गया है
इन ऊंची इमारतों के शिवा
जंगलों की कब्र में दफ़न
हैं ताजी खुशफरास हवा..
और बचा ही क्या है अब इसके शिवा....
पता चले तो बताना..कि
कहाँ है इस शहर में उन पुरानी 
बहारों का आशियाना...

4 टिप्‍पणियां:

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  2. पता चले तो बताना की कहाँ है अब इस शहर में पूरानी इमारतों का आशियाँ ...वाह क्या बात है बहुत खूब लिखा है आपने ...आज चर्चा मंच पर आपकी यह पोस्ट देखी पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ अच्छा लगा आपको भी यदि समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  3. बहुत ही सुंदर भाव संजोये हैं,कृपया शिवा को सिवा कर लें.

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