- अतुल कुशवाह
हर रोज आफिस से निकलते हैं तो घर जाते हैं
चार दीवारों में जाकर के ठहर जाते हैं,
इस अंजान शहर में तो मेरा कोई नहीं
हां मगर अक्सर हम तनहाई के घर जाते हैं।
मुद्दतें बीत गर्इं उनको तो देखा ही नहीं
जो मुझे हर रात सपनों में नजर आते हैं,
आज भी आंखों में बसा है वो चेहरा उनका
दिल से उन्हें याद कर सांसों में ठहर जाते हैं,
जब किसी को प्रेम का पैगाम मिलते देखूं तो
ख्वाबों की गलियों में खयालों से गुजर जाते हैं।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें