सोमवार, जनवरी 23, 2012

किसी तितली को फूलों से उड़ा तो मैं नहीं सकता

- अतुल कुशवाह


मैं जब भी प्रेम लिखता हूं वफाएं छूट जाती हैं
हसीं मौसम जो लिखता हूं फिजाएं रूठ जाती हैं,
तुम्हें बतला रहा हूं मैं स्वयं के दर्द का किस्सा
उन्हें आवाज देता हूं सदाएं टूट जाती हैं।।
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जवानी में मोहब्बत की छोटी सी भूल करना
कहता रहे जमाना इससे नहीं तू डरना, 
तेरे लिए लाया हूं जिंदगी से चुराकर 
इक आंख मारकर मेरा तोहफा कबूल करना।।
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लिखा जो नाम दिल में है मिटा वो मैं नहीं सकता
आंख से अश्क का दामन छुड़ा तो मैं नहीं सकता,
वो किसके साथ होगा अब कहां, कैसा खुदा जाने
किसी तितली को फूलों से उड़ा तो मैं नहीं सकता।।
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धरा की धूल हूं मैं तुम गगन के चांद तारे हो
समर्पित फूल हूं मैं, तुम प्रणय के देव न्यारे हो,
सुबह की लालिमा और भोर का सिंदूर तुम ही हो
क्षमा करना मुझे मैं भूल हूं तुम रब हमारे हो।।
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