हाँ ! इबादत-सी बन गया है तू
मेरी आदत-सी बन गया है तू
सांस लूँ या कि नाम लूँ तेरा
इक ज़रुरत-सी बन गया है तू
रूह को जो सुकून देती है
ऐसी राहत-सी बन गया है तू
मांगती हूँ तुझे दुआओं में
मेरी हसरत-सी बन गया है तू
मुद्दतों बाद जो हुई मुझ पर
उस इनायत-सी बन गया है तू
मिलती है जो बड़े मुक़द्दर से
रब की रहमत-सी बन गया है तू
तू सनम है कि है खुदा मेरा
यूं अक़ीदत-सी बन गया है तू
मैं "किरण" किस तरह कहूँ उस से
जान-ओ-दौलत-सी बन गया है तू
********************** "कविता "किरण"
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंनन्हीं पंक्तियों में दिल को छू लेने वाली बड़ी ही खूबसूरत गज़ल.
जवाब देंहटाएंvah bahut hi bhaavmayi prastuti.
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