रविवार, सितंबर 11, 2011

हाँ ! इबादत-सी बन गया है तू ..

हाँ ! इबादत-सी बन गया है तू 
मेरी आदत-सी बन गया है तू

 सांस लूँ या कि नाम लूँ तेरा  
  इक ज़रुरत-सी बन गया है तू

 रूह को जो सुकून देती है
ऐसी राहत-सी बन गया है तू

 मांगती हूँ तुझे  दुआओं में 
मेरी हसरत-सी बन गया है तू  

 मुद्दतों बाद जो हुई मुझ पर
उस इनायत-सी बन गया है तू

 मिलती है जो बड़े मुक़द्दर से 
रब की रहमत-सी बन गया है तू

 तू सनम है कि है खुदा मेरा 
यूं अक़ीदत-सी बन गया है तू

 मैं "किरण" किस तरह कहूँ उस से 
जान-ओ-दौलत-सी बन गया है तू
********************** "कविता "किरण"

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