बुधवार, मई 04, 2011

ज़माने की है आदत...

मेरा अपना तजुर्बा है इसे सबको बता देना,
हिदायत से तो अच्छा है किसी को मशविरा देना.

अभी हम हैं हमारे बाद भी होगी हमारी बात,
कभी मुमकिन नहीं होता किसी को भी मिटा देना.

नई दुनिया बनानी है, नई दुनिया बनायेंगे,
सितम की उम्र छोटी है जरा उनको बता देना.

अगर कुछ भी जले अपना बहुत तकलीफ होती है,
बहुत आसान होता है किसी का घर जला देना.

मेरी हर बात पर कुछ देर तो वो चुप ही रहता है,
मुझे मुस्किल में रखता है फिर उसका मुस्कुरा देना.

अतुल अच्छा है अपनी बात को हम खुद ही निपटा लें,
ज़माने की है आदत सिर्फ शोलों को हवा देना..

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