बुधवार, अप्रैल 27, 2011

वो गली फिर दूसरी होगी..

नहीं लगता मुझे हालत पे कुछ बात भी होगी,
अभी तो रहनुमा झगड़ेंगे बैठक खत्म ये होगी.

कभी तब्दीलियाँ आयी न आएँगी व्यवस्था में 
कमाएगी नदी झोली समंदर की भरी होगी.

खबर मरने की जिसकी आज अखबारों में आयी है
हजारों बार वो मरने से पहले भी मरी होगी.

ये माना अब तलक तूने कई रातें गुजारी हैं,
मगर हर रात आने वाली फिर भी अजनबी होगी.

बड़े मजबूत दिलवाला है तू अब तक नहीं फिसला,
मगर दिल में किसी दिन बात ऐसी आ गई होगी.

निकलता देर से लेकिन पहुँच जाता है तू पहले
गुजरता है तू जिससे वो गली फिर दूसरी होगी..

2 टिप्‍पणियां:

  1. खबर मरने की जिसकी आज अखबारों में आयी है
    हजारों बार वो मरने से पहले भी मरी होगी....

    बहुत मर्मस्पर्शी शेर...
    भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई।

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  2. आभारी हू शरद जी. आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा ..अतुल

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