गुरुवार, मई 26, 2011

तेरी सतरंगी यादों में खो जाता हूं...



तेरी सतरंगी यादों में खो जाता हूं...
जलते है दीए...तेरी आंखों के...
जब अंधेरा घेर लेता है मन को...
याद तुझे कर लेता हूं....
जल जाते है हजारों दीए...
उजालें सांसों मे भर लेता हूं....

गुजारे है संग तेरे...
कुछ दिन, कुछ पल, कुछ घडियां...
फूलों की तरह...सभी को पिरोकर..
एक माला बना लेता हूं....
मन मंदिर में बसाई है मैने...
एक सुन्दर मूरत तेरी..
उसी मूरत को...
अपनी बनाई माला पहनाता हूं....

तेरी सुनहरी यादों के बादल....
जब आसापास होते है मेरे...
हर रात को ऐ जानेमन...
मै अपने आप को...
दिन के उजाले में पाता हूं....
तुझे हंसती हुई देख कर..
खुश हो लेता हूं मै....
एक बिजली सी दौड जाती है...
मेरी रग रग में....
तब अपने आप को...
इस जहां का...शहंशाह मान लेता हूं...

तेरी यादों के गुलाबी बादल...
सुरमई शाम का संदेशा लाते है...
हम दोनों ने मिल कर गाए...
प्रेम तरानों को सुनाते है...
तब जैसे खो जाता हूं मै....
ढलते हुए सूरज की बाहों में....
बोझिल आंखों से जैसे तुम्हे तकता हूं....
तुम्हारे गेसूओं के घने साएं मे...
रात भर सो जाता हूं....

तेरी यादों के नीले बादल....
सावन की घटा बन जाते है....
छा जाते है मेरे चंचल मन पर...
नाचने लगता है मन मयूर....
प्रेम वर्षा की बूंदों से....
सूखे गले को गिला कर लेता हूं....
स्पर्श का मादक नशा...
जब रग रग में उतर जाता है मेरी...
दो जहां हासिल होने का सुख महसूस करता हूं...

तेरी यादों के पिले बादल...
पहुंचा देते है मुझे...
गलतफहमी के गहरे भंवर में....
जहां मै वृत्ताकार घुमता हुआ...
कभी उपर..कभी नीचे....
आता..जाता रहता हूं....
कभी डूबता हूं ..कभी तैरता हूं....
न जीता हूं..न मरता हूं....
इस पार या उस की आस लिए...
अपनी परिणीती का इंतजार करता हूं...

तेरी यादों के काले बादल...
जब जब छा जाते है...
सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है जानम...
धडकने रुक रुक सी जाती है दिल की....
इस जमीन से उठ कर आसमां पर...
चले जाने को चाह्ता है दिल...
तुझे ढूंढ्ने की चाहत न जाने क्यों..
और बढ जाती है....
और मै अपने आप को भूल जाता हूं....
जानता हूं..तू आसपास नही है,
फिरभी..
तेरा नाम ले ले कर....
पुकारता हुआ....
दूर दूर तक चला जाता हूं....

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