रविवार, मई 08, 2011

वो ऐसा क्या है जिसे देखने से डरता हूँ



तिरी गली से दबे पाँव क्यों गुज़रता हूँ 
वो ऐसा क्या है जिसे देखने से डरता हूँ 

किसी क्षितिज की ज़रूरत है मेरी आँखों को 
सो कुदरत आज नया आसमान करता हूँ 

उतारना है मुझे कर्ज़ कितने लोगों का 
ज़रा सुकून मिले तो हिसाब करता हूँ 

अजब नहीं कि किसी याद का गुहर मिल जाए 
गये दिनों के समन्दर में फिर उतरता हूँ 

बड़े जतन से बड़े बंदोबस्त से तुझको 
भुला रहा हूँ, मोहब्बत का दम भी भरता हूँ

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