तिरी गली से दबे पाँव क्यों गुज़रता हूँ
वो ऐसा क्या है जिसे देखने से डरता हूँ
किसी क्षितिज की ज़रूरत है मेरी आँखों को
सो कुदरत आज नया आसमान करता हूँ
उतारना है मुझे कर्ज़ कितने लोगों का
ज़रा सुकून मिले तो हिसाब करता हूँ
अजब नहीं कि किसी याद का गुहर मिल जाए
गये दिनों के समन्दर में फिर उतरता हूँ
बड़े जतन से बड़े बंदोबस्त से तुझको
भुला रहा हूँ, मोहब्बत का दम भी भरता हूँ
वो ऐसा क्या है जिसे देखने से डरता हूँ
किसी क्षितिज की ज़रूरत है मेरी आँखों को
सो कुदरत आज नया आसमान करता हूँ
उतारना है मुझे कर्ज़ कितने लोगों का
ज़रा सुकून मिले तो हिसाब करता हूँ
अजब नहीं कि किसी याद का गुहर मिल जाए
गये दिनों के समन्दर में फिर उतरता हूँ
बड़े जतन से बड़े बंदोबस्त से तुझको
भुला रहा हूँ, मोहब्बत का दम भी भरता हूँ
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