बुधवार, मई 25, 2011

सांसें भीग जाती हैं


पत्रकार और युवा कवि अलोक श्रीवास्तव जी कि ये गजल रास आ रही है...
तुम्हारे पास आता हूं तो सांसे भीग जाती हैं,
मुहब्बत इतनी मिलती है कि आंखें भीग जाती हैं।
तबस्सुम इत्र जैसा है, हंसी बरसात जैसी है,
वो जब भी बात करता है तो बातें भीग जाती हैं।
तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है,
तुम्हें जब गुनगुनाता हूं तो सांसें भीग जाती हैं।
ज़मीं की गोद भरती है तो क़ुदरत भी चहकती है,
नए पत्तों की आमद से ही शाखें भीग जाती हैं।
तेरे एहसास की ख़ुशबू हमेशा ताज़ा रहती है,
तेरी रहमत की बारिश से मुरादें भीग जाती हैं।

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