कवयित्री डॉक्टर कविता किरण जी की ये लाइने मुझे बेहद पसंद हैं...
इबादत कौन करता है इनायत कौन करता है,
सभी हैं लूटनेवाले हिफाज़त कौन करता है,
भ्रमर की गुनगुनाहट से ही अब हर फूल डरता है.
सभी खिलवाड़ करते हैं मुहब्बत कौन करता है
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मेरी ख़ामोशी को इज़हार समझ बैठे हैं,
मेरे इन्कार को इकरार समझ बैठे हैं,
हंसके दो बात 'किरण' हमने उनसे क्या कर ली,
बस इसी बात को वो प्यार समझ बैठे हैं
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कलम अपनी,जुबां अपनी कहन अपनी ही रखतीहूँ,
अंधेरों से नहीं डरती 'किरण' हूँ खुद चमकती हूँ,
ज़माना कागजी फूलों पे अपनी जां छिड़कता है
मगर मैं हूँ की बस अपनी ही खुशबू से महकती हूँ
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ज़रा पाने की चाहत में जियादा छूट जाता है
जो कतरे को मनाती हूँ समंदर रूठ जाता है
कभी भी भूलकर मत आज़माना तुम 'किरण दिल को
ज़रा-सी ठेस लगने से ये शीशा टूट जाता है
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सूर्य ने जुगनुओं को पाला है,
क्या हुआ दिल किसी का काला है
नाम मेरा 'किरण' है ऐ साहिब!
मेरे अंदर मेरा उजाला है
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आइना रोज़ संवरता कब है
अक्स पानी पे ठहरता कब है
हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है
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दिल में उमीदें जगाओ तो सही
ख्वाब पलकों पे सजाओ तो सही
इतना भी ऊँचा नहीं है आस्मां
तुम परों को आजमाओ तो सही
Meri rachnaon ko sarahne ke liye aur apne blog per share karne ke liye shukriya Atulji..:))
जवाब देंहटाएंAabhari hu kavita ji...
जवाब देंहटाएंAtul
Bahut Rochak Hai
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