मंगलवार, मार्च 01, 2011

ऐ! खूबसूरत स्त्रियों...

 ऐ! खूबसूरत स्त्रियों 
तुम मुझे माफ़ कर देना....
हम तुम्हारे वक्ष और कटि पर 
तुम्हारी तारीफ़ में 
कविता न लिख पाएंगे...
और हाँ- हमारी कविता में 
न तो रात के चाँद का जिक्र होगा 
और न ही कोई सवेरे वाला 
चिड़ियों का गीत होगा.....
फूल-पत्ती/ पहाड़-हवा 
सूरज- नदी 
किसी का भी खूबसूरती पर 
न होगा एक शब्द भी ..
दोस्त! मेरी मजबूरी समझो ...
अपने पति की याद में 
सती होती औरतों की तरह 
मेरी कविता पूर्ण नंगी 
जन्म से मौत तक 
समर्पित है 
भूख से तड़पते हुए लोगों पर .....
जिनके पेट से छाती तक 
इस कदर चिपटी- कि
देखने वाले कुछ और ही अर्थ 
निकालते हैं उम्र भर 
तुम्ही बताओ - फिर भला 
किसी और के जिक्र तक क़ी
गुंजाइश कहाँ बचती................
 - अतुल 

1 टिप्पणी:

  1. सच्चे मन की सच्ची और बहुत अच्छी कामना - अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं|

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