बुधवार, फ़रवरी 16, 2011

चटकते सम्बन्ध दरकता विश्वाश


चटकते सम्बन्ध
दरकता विश्वाश
आदमी से ही आदमी निराश
गुंडों के शरीर
झूलती खद्दर
इंसानियत नंगी चौराहे पर आज
अच्छे लोग घाट लग गए
बुरे दिल्ली पहुँच गए
भगवान् के आगे खुद को
अवतार बता रहे हैं
कुछ धार्मिक लोग
गुरु ही लूटने लगे हैं अस्मत हर रोज़
मेरी समझ में नहीं आता
इनकी मंशा क्या है
ये चाहते क्या हैं दोस्त
ये चाहते क्या हैं...

2 टिप्‍पणियां:

  1. चटकते सम्बन्ध
    दरकता विश्वाश
    आदमी से ही आदमी निराश
    गुंडों के शरीर
    झूलती खद्दर
    इंसानियत नंगी चौराहे पर आज
    अच्छे लोग घाट लग गए
    बुरे दिल्ली पहुँच गए.....

    सच्चाई को वयां करती हुई सुन्दर रचना के लिए बधाई।

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