मंगलवार, जुलाई 19, 2011

अम्मा! क्या मेरा ये सपना सच होगा...

- अतुल कुशवाह
अम्मा! कल भगत सिंह ने
चलती संसद में बम क्या फेंका-कि
माननीयों की लाशें इस कदर दिखीं-जैसे
अपनी तनख्वाह/भत्ता का
बढोत्तरी विधेयक की तरह
सारा पक्ष-विपक्ष
आपस में मिल गया हो...
किसी का पांव किसी के सर पे
किसी की टोपी पर किसी के जूते
कटे हाथ/फटी तोन्दें
ऐसा लगता- कि मांस के चीथडे
जनता से माफी मांग रहे हों...
अम्मा, पंजे में खूनी खद्दर!
और चोंच में मांस के लोथडे दाब कर
हाय..चील जैसे ही उडी
मैं तो डर गया...उठ बैठा...
देखा कि- सवेरा हो चुका था....
अम्मा! कहीं ऐसा तो नहीं कि -
कल रात पेशाब करके बिना हाथ धोये
मैं कई दिनों का भूखा सोया था
तू तो कहती है कि बेटा
सवेरे के सपने सच होते हैं
अम्मा! क्या मेरा ये सपना सच होगा...

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