इस आसमान को मेरे आगोश में सिमटना होगा
क्योंकि मेरी चाहत इक नया आसमान बनाने की है।
हटना होगा तूफानों को मेरे रास्ते से ,
क्योंकि मेरी चाहत मंजिलों को पाने की है।
चमकना होगा मुझे इक नया सूरज बनकर ,
क्योंकि मेरी चाहत पत्थरों को पिघलाने की है।
मिटाना होगा सागर को अपना खारापन ,
क्योंकि मेरी चाहत हर- एक बूँद के अस्तित्व को दिखाने की है।
सिमटना होगा संसार को मेरी मुट्ठी में,
क्योंकि मेरी चाहत जमीन को आसमान से मिलाने की है।
इस वक्त को देना होगा हिसाब हर एक पल का,
क्योंकि मेरी चाहत हर-एक पल को अपना बनाने की है ।
सामना करना होगा यहाँ सभी को हर मुश्किल का ,
क्योंकि मेरी चाहत एक नया जहाँ बनाने की है।
करना होगा विश्व को इसका आवाहन ,
क्योंकि मेरी चाहत विश्वमंच पर ख़ुद को दिखाने की है।।
अच्छी शैली में और बेहतरीन कविता लिखी है अतुल जी..
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