दीपावली के मौके पर गजल के चाहने वालों को एक गजल बतौर तोहफा भेंट कर रहा हूँ....पसंद आये तो जरूर बताइयेगा...दीवाली की शुभकामनाएं..
है क्यूँ खामोश दरिया ये जो कल तक शोर करता था,
उदासी झील की शायद इसे देखी नहीं जाती.
तेरी खामोशियों के लफ्ज जब कानों में पड़ते हैं.
ये सांसें रोक लूं पर धडकनें रोकी नहीं जातीं.
अँधेरी रात से मिलना उजाले की भी ख्वाहिश है,
मगर किस्मत यहाँ ऐसी कभी शय ही नहीं लाती.
तमन्ना रह गई हर बार उसके पास जाने की,
कभी हम खुद नहीं जाते कभी वो ही नहीं आती.
मेरा जब नाम उसके लब को छूता है तो मत पूछो,
धडकता है ये दिल कब तक मुझे गिनती नहीं आती.
मोहब्बत में 'अतुल' तेरा यही अंजाम होना था,
वफ़ा मिलती नहीं सबको समझ ये क्यूँ नहीं आती..
- अतुल कुशवाह